नम्रता एवं संतोष होने पर ही व्यक्ति क्षमा कर सकता है और क्षमा मांग सकता है - श्रद्धेय सिद्ध भाऊजी
शहीद हेमू कालानी एजूकेशनल सोसायटी ने मनाया “वैश्विक क्षमा दिवस” के रूप में दादा जे.पी. वासवानी का जन्म दिन
परमहंस संत हिरदाराम साहिबजी के आशीर्वाद एवं परम श्रद्धेय सिद्ध भाऊजी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में शहीद हेमू कालानी एजुकेशनल सोसाइटी के समस्त स्कूल एवं कालेज प्रति वर्ष दादा जे.पी. वासवानी का जन्मदिन क्षमा दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं. इस वर्ष “ आजादी के अमृत महोत्सव” के अवसर पर यह कार्यक्रम “विश्व क्षमा दिवस” के रूप में वृहद पैमाने पर संत हिरदाराम ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया. कार्यक्रम का लाइव प्रसारण यूटियूब पर भी किया गया. इस कार्यक्रम का उद्देश था विद्यार्थियों में क्षमा का गुण विकिसत करना ताकि वे सभी से क्षमा माँगना एवं क्षमा करना सीखें।
संस्था के सचिव श्री ए.सी.साधवानी ने अपने उद्बोधन में अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि परमहंस संतजी के उत्तराधिकारी श्रद्धेय सिद्ध भाऊजी की पावन उपस्थिति में हमारे बीच मुख्य अतिथि के रूप में उपनगर की सुप्रसिद्ध पैथोलोजिस्ट, डॉ. राजकुमारी चोटरानी एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष के रूप में उनके पतिदेव, जो कि सुप्रिसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ हैं, डॉ. दिलीप चोटरानी उपस्थित हैं. ये दोनों साधू वासवानी मिशन से पिछले कई वर्षों से जुड़े हुए हैं और दादा जे.पी वासवानी एवं परमहंस संतजी के अनन्य अनुयायी हैं. डॉ. राजकुमारी चोटरानी समय समय पर उपनगर के स्कूलों एवं परिवारों से संपर्क कर साधू वासवानी मिशन के उपदेशों एवं कार्यों से उन्हें अवगत कराती आ रही हैं. कार्यकर्म के विशिष्ट अतिथि, जो कि शहीद हेमू कालानी एजुकेशनल सोसाइटी के सह-सचिव भी हैं, श्री के.एल. रामनानी थे.
कार्यक्रम में श्रद्धेय भाऊजी ने अपने आशीर्वचनों में बताया कि हमारी संस्कृति का आधार वसुधैव कुटुंबकम है अर्थात यह विश्व एक बड़ा परिवार है. हर प्राणी, यहाँ तक कि पृथ्वी पर उपस्थित प्रत्येक कण के अन्दर एक ही शक्ति है जिसे हर धर्म में अलग अलग नामों से पुकारा जाता है. इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक सर स्टीफन विलियम हाकिंग ने अपने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया कि एटम, जो कि प्रथ्वी के हर पदार्थ का मूल है, उसमें स्वयं से प्रकाशित एक कण है. डॉ. सत्येन्द्र बोस ने भी इस कण को अपनी प्रयोगशाला में दर्शया एवं सिद्ध किया था। उन्होंने इस कण को नाम दिया हिग्ग्स बोसॉन या गॉड पार्टिकल. प्राचीन काल से ही हमारे ग्रंथों ने भी इसी तथ्य को रेखांकित किया है कि ईश्वरीय शक्ति आजन्मी एवं स्वयं से प्रकाशित है. जब सभी में उसी इश्वर का वास है तो क्यों किसी से बैर रखें. क्यों न सभी को क्षमा कर दें या यदि हमने कोई गलती की है तो क्षमा मांग लें. व्यक्ति में वास्तविक आनंद व संतोष क्षमा करने व क्षमा मांगने से आता है. अहंकार वश हम क्षमा नहीं कर पाते हैं। दुःख और सुख की अनुभूति हमारा मन करता है. मन विचारों का पुंज है और विचार बनते हैं हमारे सुनने, देखने और कर्म करने से. यदि ये तीनो सात्विक हैं तो हमारा मन भी निर्मल होगा और अहंकार से दूर रहेगा. जिस व्यक्ति के मन में नम्रता होगी वो न क्षमा मांगने में देर करेगा और न क्षमा करने में. जीवन के अंतिम समय में व्यक्ति सभी से मन ही मन क्षमा मांगता है. अंत समय में माफी मांगने की अपेक्षा जीवन में समय .समय पर क्षमा मांगना सीखें। यदि मन में बदले की भावना रहेगी तो इससे हमारा ही नुक्सान होता है. मन शांत व एकाग्र नही होने से कार्य में मन नहीं लगता और कई प्रकार की मानसिक और शारीरिक व्याधियां हमें घेर लेतीं हैं. क्षमा करने के लिए अपने मन को मार कर, अपने अहंकार को विगलित करके, हृदय को निर्मल बनाकर ही किसी को क्षमा किया जा सकता है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए डॉ. राजकुमारी चोटरानी ने परमहंस संत हिरदाराम साहिबजी और श्रद्धेय दादा जे.पी. वासवानी की कृपा से हुए अपने अनुभवों के बारे में बताते हुए कहा कि उनके कई कार्य संतों के दर्शन मात्र से ही चमत्कारिक रूप से सिद्ध हो गए. उनके दोनों सुपुत्र पढाई में उत्क्रष्ट प्रदर्शन करते हुए डॉक्टर बन गए हैं. जबसे उन्होंने दादा जे.पी. वासवानी के क्षमा करने और क्षमा मांगने के मूल मन्त्र को अपनाया है उनके मन से सब मैल साफ हो गया है. विद्यार्थियों को अपनी पढाई पर ध्यान देने के साथ ही अन्य गुणों जैसे नम्रता, पवित्रता, शिष्टाचार, संस्कार, क्षमा करना एवं क्षमा मांगना आदि को आत्मसात करना चाहिए जिससे उनका जीवन सफल व सुन्दर बन सके.
विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए संस्था के सह-सचिव श्री के.एल. रामनानी ने कहा कि क्षमा का गुण विकसित करने के लिए अन्य गुणों का विकसित होना आवश्यक है जैसे दया, प्रेम, परिश्रम, करुणा, संयम, दुसरे के प्रति सम्मान की भावना आदि. इन गुणों को निरंतर बढाते रहें और जैसे जैसे वे बढ़ते जायेंगे हममें क्षमा का गुण विकसित होता जायेगा. क्षमा करने या मांगने से सबसे अधिक लाभ हमारा ही होता है क्योंकि मन से एक बोझ उतर जाता है और उस व्यक्ति के किसी भी द्वेष से हम दूर हो जाते हैं.
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. दिलीप चोटरानी ने खुश रहने के दादा वासवानी के सात उपाय बताये जैसे प्रात: उठते ही तय करना कि मुझे आज खुश रहना है, सीमित इच्छाएं, सकारात्मक विचार, संयम रखना, ईर्ष्या, जलन, क्रोध का त्याग, नम्रता, एवं किसी को अपमानित न करते हुए हास्य-विनोदी स्वभाव रखना. उन्होंने प्रत्येक धर्म में क्षमा के गुण के बारे में बताते हुए कहा कि सभी धर्मों का एक ही ध्येय है जीवन में सफलता, संतोष एवं आनंद की प्राप्ति.
इस अवसर पर परमहंस संतजी के अनुयायी, श्री कन्हैयालाल हेमनानी ने दादा वासवानी की तीन शिक्षाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि चींटी से सीखें सदैव आगे बढ़ना, समय अच्छा हो या बुरा बीत ही जाता है एवं हम सब इश्वर के बच्चों जैसे हैं वे सबका ध्यान रखते हैं और कभी किसी का बुरा नहीं करते यदि हम सब अपने मन, वचन एवं कर्म से किसी का बुरा करना तो दूर इस सम्बन्ध में मन में भी न सोचें.
कार्यक्रम में पुणे से पधारीं, परम श्रद्धेय सिद्ध भाऊ जी की बहिन श्रीमती सुशीला दुनानी, शहीद हेमू कालानी एजुकेशनल सोसाइटी के अकेडमिक डायरेक्टर, श्री गोपाल गिरधानी, प्रशासनिक अधिकारी श्री भगवान् बाबाणी, पदाधिकारी, सदस्यगण एवं कार्यकर्ता श्री लोकचंद जनियानी, भगवान् दामानी, महेश दयारामानी, हीरो ज्ञानचंदानी, थावर वर्लानी, उपनगर के गणमान्य नागरिक - कर्नल नारायण पारवानी, वासदेव वाधवानी, सुरेश राजपाल, नन्द कुमार सन्मुखानी, पुरषोत्तम पारवानी, देवीदास उत्तमचंदानी, पत्रकार बंधू, ब्रह्मकुमारी पंथ की सेविकाएँ, समस्त स्कूलों कालेजों के प्राचार्यगण, शिक्षकगण एवं विद्यार्थी उपस्थित थे.
कार्यक्रम का कुशल सञ्चालन एवं आभार प्रदर्शन श्रीमती प्रमिता दुबे परमार ने किया एवं समापन क्षमा विषय पर दादा जे. पी. वासवानी के एक प्रभावशाली विडियो सन्देश के साथ हुआ.
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